रूह तक खिल उठती है

क्या तुम्हें मेरा नाम याद है? अरे हाँ मुझे मालूम है तुम मेरा नाम अच्छी तरह जानते हो, मगर क्या बात करते वक़्त, मुझे देखते हुए या मेरे बारे में सोचते हुए तुम्हें मेरे नाम का ख़्याल होता है?मैं बताऊँ?मुझे बिल्कुल नहीं होता। 


मैंने लड़कपन में सुना था और फिर खुद भी महसूस किया कि जब आप प्रेम में होते हैं और उसे जीने लगते हैं तब शक्ल बहुत पीछे छूट जाती है, बेहद जल्दी। मैंने इस बारे में न सोचा था कि दो लोगों का वजूद इस कदर मिल जाता है कि नाम मालूम तो हो मगर ख़याल कभी न आए। ये और बात है कि वो पास न हो और कहीं उसका नाम आ जाए, तो रूह तक खिल उठती है।यूँ भी आक के फूलों के रस में डूबे भँवरों को उन फूलों का नाम कहाँ पता होता है?

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पिछले कुछ बरसों से हर बरस इस वक़्त मैं अपने घर यानी मायके में होती हूँ। इस साल छुट्टियाँ तो आ गई हैं मगर तालाबंदी जारी है, और जो ख़त्म हो भी जाए तो भी शायद जाना न होगा। छुट्टियाँ यहां इस घर में भी बुरी नहीं हैं, मगर एक महीने के लिए अपनी छोटी सी दुनिया का थोड़ा बदल जाना किसे अच्छा नहीं लगता, उस पर से वो बेतकल्लुफ़ी और लापरवाहियां करने की आज़ादी जितनी माँ-पापा के आस पास होने से मिलती है उतनी इस दुनिया में किसी को और कहीं कम ही मिलती है। यहाँ इस वक़्त ये लिखते हुए सोच रही हूँ, वहां होती तो क्या कर रही होती। शायद भाई-भाभी के साथ गप्पें मार रही होती या शायद कोई फ़िल्म देख रही होती। हाँ अगर हममें से कोई सो जाता तो शायद मैं कोई किताब पढ़ रही होती, छुट्टियों में दो बजे से पहले सोना वर्जित है। अगर लॉकडाउन न होता तो ये हमारी शॉपिंग का समय भी था और न जाने क्या क्या? 

ख़ैर मैं चाहती हूँ कि लॉकडाउन खत्म हो कोरोना के साथ साथ और वो जो एक लॉकडाउन दुनिया ने प्रेमियों, दीवानों, सूफियों और लड़कियों पर सदियों से लगाया हुआ है न, वो भी ख़त्म हो जल्द बहुत जल्द।
आमीन।

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तस्वीर: जंगल, अक्टूबर 2019। नाम में क्या रखा है?

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